पर्यावरण एवं विज्ञान >> हवा और पानी में जहर हवा और पानी में जहरएन. मणिवासकम
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"धरती एक अत्यधिक बीमार ग्रह बन गई है जिसका तुरन्त उपचार आवश्यक है। पृथ्वी पर हर ओर प्रलय का खतरा मंडरा रहा है। यदि इसे न रोका गया, तो पूरा ग्रह रहने लायक नहीं रह जायेगा" - के. वी. नारायण
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि हम सभी एक गंभीर पर्यावरण संकट के
बीच फंसे हुए हैं। इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है संसाधनों का हमारा
कुप्रबन्ध। हमने हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषकों से विषाक्त कर दिया है।
ऐसा करके हमने पृथ्वी, वातावरण और सागर के प्राकृतिक बलों को इस प्रकार
असन्तुलित कर दिया है जो मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता है। जनसामान्य
तथा विद्यार्थियों के लिए लिखी गई यह पुस्तक न केवल ऊपर बताये गये तथ्यों
पर प्रकाश डालती है बल्कि यह भी बताती है कि स्वयं को सुरक्षित रखने के
लिए पर्यावरण को किस प्रकार सुरक्षित रखें।
एन. मणिवासकम प्रिंसिपल पब्लिक हेल्थ लेबोरेट्री, कोयम्बटूर में जल विश्लेषक हैं और इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के सदस्य हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा इसी विषय पर इनकी पहले प्रकाशित पुस्तक 'एन्वायरन्मेण्टल पाल्यूशन' इतनी लोकप्रिय साबित हुई कि उसके कई संस्करण प्रकाशित करने पड़े थे।
एन. मणिवासकम प्रिंसिपल पब्लिक हेल्थ लेबोरेट्री, कोयम्बटूर में जल विश्लेषक हैं और इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के सदस्य हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा इसी विषय पर इनकी पहले प्रकाशित पुस्तक 'एन्वायरन्मेण्टल पाल्यूशन' इतनी लोकप्रिय साबित हुई कि उसके कई संस्करण प्रकाशित करने पड़े थे।
प्राक्कथन
1950 से 60 के दशक के समाचारपत्र आमतौर पर हत्याओं, दुर्घटनाओं, दंगों आदि
के समाचार प्रकाशित करते थे। आजकल के समाचारपत्र भी ऐसी घटनाओं के समाचार
प्रकाशित करते हैं, परंतु साथ में ही वे पर्यावरण की हत्या, औद्यौगिक
दुर्घटना, हैजा तथा आंत्रज्वर के कारण अनेक लोगों की मृत्यु जैसे शीर्षकों
से भी खबरें प्रकाशित करते हैं। आप यह पूछ सकते हैं कि इन 30 अथवा 40
वर्षों के अंतराल में क्या हो गया है ? तो सुनिए, वैज्ञानिक विकास ने
अत्यधिक प्रगति की है और प्रौद्योगिकी नयी ऊंचाइयों को छूने लगी है। इसके
लिए मानव जाति सदैव आभारी रहेगी क्योंकि प्रौद्योगिक विकास के बिना
औद्योगिक प्रगति तथा समग्र विकास केवल स्वप्न की बातें रही होतीं। तथापि
इस विकास का एक दूसरा पहलू भी है, और वह है इसके फलस्वरूप उत्पन्न
प्रदूषण।
हम यह स्वीकार करते हैं कि प्रदूषण विकास से जुड़ा हुआ है, परंतु इस सीमा तक नहीं। मानव स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं। प्रदूषण को सह्य सीमा के भीतर रखना होगा। इसे धरती के लिए खतरा नहीं बनने दिया जा सकता। जहाँ विकसित देशों के लोग प्रदूषण के परिणामों के प्रति अधिक से अधिक जागरूक हो रहे हैं, वहीं विकासशील देशों (भारत सहित) के लोगों को इसकी रत्तीभर भी परवाह नहीं है। हम इसे या तो अपने दैनिक जीवन के अंग के रूप में लेते हैं अथवा इसकी तरफ से आँखें मूंद लेते हैं। यह पुस्तक हमारे अपने नागरिकों एवं प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से लिखी गयी है। प्रदूषण की आम प्रकृति से प्रारंभ करके मैंने वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, तेल की परतें, ठोस कचरा, विकिरण जैसे व्यापक के विषयों को इसमें शामिल करने का प्रदूषण के खतरों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए एकजुट होकर समाप्त करने की अपील के साथ मैंने पुस्तक को समाप्त किया है। तथा हाल ही में घटित प्रमुख दुर्घटनाओं के व्यापक विवरण को पुस्तक में उपयुक्त स्थान दिया गया है। प्रदूषण के गंभीर प्रभावों की जानकारी देने के लिए विश्व के अन्य भागों में घटित दुर्घनाओं को भी पुस्तक में शामिल किया गया है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह आम आदमी और विद्यार्थियों के लिए संदर्भ सामग्री के रूप में, अध्यापकों को पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर जानकारी प्रदान करने की पुस्तक के रूप में तथा प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों से जुड़ी हुई व्यावसायिक संस्थाओं और संगठनों के लिए स्रोत पुस्तक के रूप में उपयोगी होगी।
इस पुस्तक को तैयार करने में अनेक लोगों ने सहायता की है जिसके लिए मैं उन सबका आभारी हूं। समय निकालकर इस पुस्तक को पुनः संयोजित करने के लिए मैं श्री मुरुगेसन को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहूंगा। मैं अपने उन सभी सहयोगियों के प्रति विशेष आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस पुस्तक को पूरा करने में मेरी हर संभव सहायता की है। मैं अपनी मां अरुणागिरि अम्मा, अपनी पत्नी शिवाबगियम और अपने पुत्र शक्ति कुमार को उनके धैर्य तथा लगातार प्रोत्साहन देने के लिए धन्यवाद देता हूं। अंत में नेशनल बुक ट्रष्ट, इंडिया को इस पुस्तक को प्रकाशित करने में अत्यधिक रुचि लेने के लिए सच्चे अर्थों में धन्यवाद देते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।
हम यह स्वीकार करते हैं कि प्रदूषण विकास से जुड़ा हुआ है, परंतु इस सीमा तक नहीं। मानव स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं। प्रदूषण को सह्य सीमा के भीतर रखना होगा। इसे धरती के लिए खतरा नहीं बनने दिया जा सकता। जहाँ विकसित देशों के लोग प्रदूषण के परिणामों के प्रति अधिक से अधिक जागरूक हो रहे हैं, वहीं विकासशील देशों (भारत सहित) के लोगों को इसकी रत्तीभर भी परवाह नहीं है। हम इसे या तो अपने दैनिक जीवन के अंग के रूप में लेते हैं अथवा इसकी तरफ से आँखें मूंद लेते हैं। यह पुस्तक हमारे अपने नागरिकों एवं प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से लिखी गयी है। प्रदूषण की आम प्रकृति से प्रारंभ करके मैंने वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, तेल की परतें, ठोस कचरा, विकिरण जैसे व्यापक के विषयों को इसमें शामिल करने का प्रदूषण के खतरों के विरुद्ध सुरक्षा के लिए एकजुट होकर समाप्त करने की अपील के साथ मैंने पुस्तक को समाप्त किया है। तथा हाल ही में घटित प्रमुख दुर्घटनाओं के व्यापक विवरण को पुस्तक में उपयुक्त स्थान दिया गया है। प्रदूषण के गंभीर प्रभावों की जानकारी देने के लिए विश्व के अन्य भागों में घटित दुर्घनाओं को भी पुस्तक में शामिल किया गया है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह आम आदमी और विद्यार्थियों के लिए संदर्भ सामग्री के रूप में, अध्यापकों को पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर जानकारी प्रदान करने की पुस्तक के रूप में तथा प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों से जुड़ी हुई व्यावसायिक संस्थाओं और संगठनों के लिए स्रोत पुस्तक के रूप में उपयोगी होगी।
इस पुस्तक को तैयार करने में अनेक लोगों ने सहायता की है जिसके लिए मैं उन सबका आभारी हूं। समय निकालकर इस पुस्तक को पुनः संयोजित करने के लिए मैं श्री मुरुगेसन को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहूंगा। मैं अपने उन सभी सहयोगियों के प्रति विशेष आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस पुस्तक को पूरा करने में मेरी हर संभव सहायता की है। मैं अपनी मां अरुणागिरि अम्मा, अपनी पत्नी शिवाबगियम और अपने पुत्र शक्ति कुमार को उनके धैर्य तथा लगातार प्रोत्साहन देने के लिए धन्यवाद देता हूं। अंत में नेशनल बुक ट्रष्ट, इंडिया को इस पुस्तक को प्रकाशित करने में अत्यधिक रुचि लेने के लिए सच्चे अर्थों में धन्यवाद देते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।
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